Friday, July 3, 2009

बेचारा एक अखबार

महोदय,
बेचारा एक अखबार
जाने कितना लाचार
ख़ुद से ही बेखबर
लेकर वही खबर
पड़ पड़ कर ख़ुद शब्द ही खीसे
रोजाना वही आतंकवाद
सगे भाइयो का विवाद
गिरती हुई सरकार
सामूहिक बलात्कार
रिश्वत की अंधी खाई
संसद की हाथा पाई
वह इस्तीफा और शपथ
विधान खून से लत पथ
तंदूर की जलती आच
फिर सीबीआई की जाच
कोई जाच मैं निर्दोस
इस मैं किसका दोषः
पंडित मूला की जिद
वही बाबरी मस्जिद
मन्दिर मैं फुटा बम
नकली दावा से निकला दम
फिर पकडाये जाली नोट
बोतल के बदले मैं वोट
पड़ पड़ कर जिसे थके हम
जाने कब होगा ख़तम
हादसों का सिलसिला
लुटेरो का काफिला
कब तक बने शिकार
बेचारा एक अखबार


1 comment:

Neha said...

very nice...tabhi toh main akhbar padti hi nahi hu